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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14 :
मित्रता

- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(व्याख्या भाग)

1.

मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है; क्योंकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है। हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरम्भ करते हैं, जबकि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है, हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं, जिसे जो जिस रूप का चाहे उस रूप का करे चाहे राक्षस बनावे, चाहे देवता। ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है, जो हमसे अधिक दृढ़ संकल्प के हैं; क्योंकि हमें उनकी हर एक बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है, जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैं; क्योंकि ऐसी दशा में न तो हमारे ऊपर कोई दबाव रहता है और न हमारे लिए कोई सहारा रहता है।

शब्दार्थ - संगति = साथ। अपरिमार्जित = बिना शुद्ध की गई। अपरिपक्व = अविकसित। दृढ़ संकल्प = पक्का इरादा।

सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण प्रसिद्ध निबन्धकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबन्ध 'मित्रता' से अवतरित है।

प्रसंग - यहाँ निबन्धकार शुक्ल जी ने मित्र का चुनाव करने में सावधानी रखने के लिए कहा है।

व्याख्या - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि व्यक्ति के जीवन की सफलता का बहुत कुछ श्रेय उसके मित्र होते हैं। मित्रों के साथ से उसके जीवन में बहुत से परिवर्तन हो जाते हैं। उपयुक्त अर्थात् सन्मार्ग की ओर ले जाने वाले मित्रों के साथ से व्यक्ति का आचरण तथा सभ्यता दोनों में सुधार होकर प्रगति का मार्ग बनता है। हम लोग यानी युवा लोग जब बचपन से निकलकर यौवन में प्रवेश करते हैं तो उस समय हमारा चित्त बहुत-सी बातों को समझने लायक नहीं होता। हम एक कच्ची मिट्टी की मूर्ति की भाँति होते हैं जिसे मनचाहा आकार देकर सुघड़ बनाया जा सकता है। उस समय हम संस्कारवाद भी बन सकते हैं और कुसंस्कारी भी। प्रवृत्तियों को, अपने स्वभाव को परिवर्तित करने का वह समय होता है। ऐसे नासमझी के समय में हमें अपने मित्रों के बारे में अत्यन्त "सजग रहना चाहिए क्योंकि उस समय के मित्रों में कई अधिक इच्छाशक्ति लिए हुए होते हैं। उनकी दृढ़ता हमें उनकी ओर मोड़ ले जाती है।

विशेष -
1. यहाँ 'हम लोग' से आशय किशोरावस्था के बच्चों से है।
2. व्यक्ति समाज में अविकसित अवस्था में रहना प्रारम्भ करता है।
3. भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
4. शैली-विचारात्मक।

2.

छात्रावास में तो मित्रता की धुन सवार रहती है। मित्रता हृदय से उमड़ी पड़ती है। पीछे के जो स्नेह बन्धन होते हैं, उसमें न तो उतनी उमंग रहती है, न उतनी खिन्नता। बाल मैत्री में जो मग्न करने वाला आनन्द होता है, जो हृदय को बेधने वाली ईर्ष्या और खिन्नता होती है, वह और कहाँ? कैसी मधुरता और कैसी अनुरक्ति होती है, कैसा अपार विश्वास होता है। हृदय के कैसे-कैसे उद्गार निकलते हैं। वर्तमान कैसा आनन्दमय दिखाई पड़ता है और भविष्य के सम्बन्ध में कैसी लुभाने वाली कल्पनाएँ मन में रहती हैं! कितनी जल्दी बातें लगती हैं और कितनी जल्दी मानना-मनाना होता है!

शब्दार्थ - धुन = लगन। स्नेह बन्धन = प्रेम के बन्धन। खिन्नता = नाराजगी। उद्गार= बातें।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - यहाँ निबन्धकार आचार्य शुक्ल जी ने छात्रावास के जीवन में बनने वाले मित्रों का वर्णन किया है।

व्याख्या - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि छात्रावास का जीवन बड़ा ही निराला होता है, उसमें रहते हुए मित्र बनाने की बड़ी जल्दी होती है। उस समय मित्रता की धुन सवार होती है जो कोई मिला उसे ही अपना मित्र बना लिया। मित्र बनाने की ललक उससे पहले भी होती है और बाद में भी किन्तु बालपन की मित्रता बड़ी निराली होती है। उसमें जरा देर में नाराजगी और जरा देर में दोस्ती चलती रहती है। युवावस्था और वृद्धावस्था की मित्रता से भिन्न होती है बालपन की मित्रता। उस समय एक दूसरे पर दृढ विश्वास होता है। एक दूसरे से किसी प्रकार के अहित की आशंका नहीं होती। यह एक प्रकार का निश्छल प्रेम होता है। इस अवस्था में ईर्ष्या भी शीघ्र हाती है और मैत्री भी शीघ्र हो जाती है। बाल मैत्री में विभिन्न कल्पनाएँ करते हुए एक अतीव आनन्द की अनुभूति होती है। सुखद भविष्य की अनेक योजनाएँ आकार लेती हैं। मन को इन्हीं उत्फुल्ल कर देने वाली कल्पनाओं में जो सुख की अनुभूति है वह अन्य अवस्था की मित्रता में नहीं होता।

विशेष –
1. यहाँ 'स्नेह-बन्धन' से लेखक का तात्पर्य युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था की मित्रता से है।
2. बाल मैत्री में किसी प्रकार का द्वेष नहीं होता, वह निर्मल और भविष्य की कल्पनाओं में मग्न रहती है।
3. भाषा - साहित्यिक खड़ी बोली।
4. शैली -विवेचनात्मक।

3.

आजकल जान-पहचान बढ़ाना कोई बड़ी बात नहीं है। कोई भी युवा पुरुष ऐसे अनेक युवा पुरुषों को पा सकता है, जो उसके साथ थियेटर देखने जाएँगे, नाच-रंग में जाएँगे, सैर-सपाटे में जाएँगे, भोजन का निमन्त्रण स्वीकार करेंगे। यदि ऐसे जान-पहचान के लोगों से कुछ हानि न होगी तो लाभ भी न होगा। पर यदि हानि होगी तो बड़ी भारी होगी। सोचो तो तुम्हारा जीवन कितना नष्ट होगा; यदि ये जान-पहचान के लोग उन मनचले युवकों में से निकले, जिनकी संख्या दुर्भाग्यवश आजकल बहुत बढ़ रही है, यदि उन शोहदों में से निकले, जो अमीरों की बुराइयों और मूर्खताओं की नकल किया करते हैं, दिन-रात बनाव- सिंगार में रहा करते हैं, महफिलों में 'ओ हो हो', 'वाह वाह' किया करते हैं, गलियों में ठट्ठा मारते हैं और सिगरेट का धुआँ उड़ाते चलते हैं। ऐसे नवयुवकों से बढ़कर शून्य, निःसार और शोचनीय जीवन और किसका है? वे अच्छी बातों के सच्चे आनन्द से कोसों दूर है। उनके लिए न तो संसार में सुन्दर और मनोहर उक्तिवाले कवि हुए हैं और न संसार में सुन्दर आचरण वाले महात्मा हुए हैं।

शब्दार्थ — निमन्त्रण = बुलावा। दुर्भाग्यवश = बुरे समय के कारण। निःसार = अर्थहीन। शोचनीय = विचार करने लायक। मनोहर = मन को भाने वाले। उचित = कथन।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में निबन्धकार रामचन्द्र शुक्ल ने युवा वर्ग में आई अवनति का संकेत दिया है।

व्याख्या - रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि आधुनिक समय आपसी मेल-जोल बढ़ाने का सबसे अच्छा समय है। लोग चलते-फिरते मित्र बन तथा बनाए जा सकते हैं। आज फिल्म देखना, मेला घूमना, कहीं यात्रा पर जाना तथा किसी के यहाँ दावत पर जाना कुछ ऐसे अवसर सुलभ हो गए हैं जिनके बड़ी सरलता से मेल-मिलाप तथा मित्रता हो जाती है। इन अवसरों की तो आजकल बाढ़ ही आ गई है। इनमें हम बिना सोचे समझे मित्र बना लेते हैं, यदि ऐसे मित्रों में से एक भी ऐसा निकल गया जो हमारा अहित चाहता हो तो हमें बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है। आज जैसे-जैसे समाज में खुलापन अधिक बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मित्र बनाने की हड़बड़ी बढ़ती जा रही है। आज युवा एक दूसरे की नकल करने लगे हैं। अमीरों की बुराइयाँ करना, शेखी मारना, बड़प्पन दिखाना, दिखावा करना, यार-दोस्तों में बैठकर हँसना, गप्पे मारना, आवारागर्दी, बद चलनी करना तथा नशा करना सीखते जा रहे हैं। ऐसे युवकों में से यदि एक भी इस हड़बड़ी में हमारा मित्र बन गया तो उसके सारे ऐब हमारे अन्दर आ जाएँगे और हमारे भविष्य को अंधकारमय बना देंगे।

शुक्ल जी कहते हैं कि ऐसे दिशाहीन और राह से भटके हुए युवाओं का जीवन अत्यन्त ही बुरा होता है। इनके लिए जीवन में आनन्द का उच्च स्थान नहीं होता। निम्न स्तर के जीवन को ही ये आनन्द मानते हैं और समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। ऐसे गर्त में गिरे हुए युवाओं के लिए न तो साहित्यकार तथा न महात्मा ही कुछ कर पाते हैं। उनके लिए अच्छे आचरण वाले उपदेश बेकार होते हैं।

 

विशेष -
1. यहाँ लेखक ने बुरे लोगों से मित्रता को अर्थहीन बताया है।
2. लेखक की दृष्टि में कवियों के लिखे हुए शब्द तथा महात्माओं के उपदेशात्मक वचन ही सच्चा आनन्द है।
3. भाषा - साहित्यिक खड़ी बोली।
4. शैली —विचारात्मक, विवेचनात्मक।

4.

सावधान रहो, ऐसा न हो कि पहले-पहल तुम इसे एक बहुत सामान्य बात समझो और सोचो कि एक बार ऐसा हुआ, फिर ऐसा न होगा। अथवा तुम्हारे चरित्र - बल का ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि ऐसी बातें बकनेवाले आगे चलकर आप सुधार जायेंगे। नहीं, ऐसा नहीं होगा। जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है, तब फिर यह नहीं देखता है कि वह कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है। धीरे-धीरे उन बुरी बातों में अभ्यस्त होते-होते तुम्हारी घृणा कम हो जाएगी। पीछे तुम्हें उनसे चिढ़ न मालूम होगीं, क्योंकि तुम यह सोचने लगोगे कि चिढ़ने की बात ही क्या है। तुम्हारा विवेक कुंठित हो जायेगा और तुम्हें भले-बुरे की पहचान न रह जायगी। अन्त में होते-होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगे। अतः हृदय को उज्जवल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही कि बुरी संगत की छूत से बचो।

शब्दार्थ - चरित्र - बल = आचरण सम्बन्धी बल। अभ्यस्त = कुशल। कुंठित = विवेकहीन। उज्ज्वल = स्वच्छ। निष्कलंक = कलंक रहित।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में निबन्धकार में कुसंगति को छूत की बीमारी के समान बताकर उससे बचने की सलाह दी है।

व्याख्या - युवाओं को बुरी संगति की बीमारी से बचाने के उपाय बताते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं कि बुरे लोगों तथा बुराई से सदैव सावधान रहो। यदि तुम यह सोचते हो कि बुरे लोगों के साथ रहने से तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा अथवा तुम्हारा चरित्र उन बुराइयों से अछूता रह जाएगा तो यह केवल तुम्हारा भ्रम है। यह सामान्य बात नहीं है। बुरे लोगों के साथ से आप किसी भी प्रकार बुराइयों से बच नहीं सकते। इन्हें तुमकों हल्के में नहीं लेना चाहिए। यदि तुम यह सोचते हो कि आगे चलकर स्वत: ही सब सुधार हो जाएगा किन्तु ऐसा कुछ नहीं होगा वरन् तुम्हारा चरित्र और भी मलिन हो जाएगा।

एक बार पतन के रास्ते पर चलने के बाद उससे उबरना आसान नहीं है। बुराइयाँ अपनी ओर खींचती हैं और जो एक बार उनके प्रभाव में आ गया फिर उन्हीं में खो जाता है। बुराई ही अच्छाई प्रतीत होने लगती है। तुम्हारा स्वभाव उनमें रम जाता है और वे तुममें। धीरे-धीरे तुम बुराई को बुराई मानकर चिढ़ना कम कर दोगे और अपने स्वभाव का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लोगे।

बुराई एक ऐसी प्रक्रिया है जो तुम्हारे विवेक को नष्ट कर तुम्हें विवेक शून्य बना देती है जिससे तुम्हें अच्छे तथा बुरे का ज्ञान नहीं रहता। कुछ समय बाद बुराई ही अच्छाई लगने लगेगी और उसे ही जीवन का सुख मानने लगोगे। तुम बुराई की ही पूजा करने लगोगे। शुक्ल जी कहते हैं कि एक बार बुराई स्वभाव में ग्रहीत हो जाने के बाद फिर सहज नहीं छूटती। अतः बुराई से सदैव सावधान रहने की आवश्यकता है यही अपने चरित्र को साफ-सुथरा रखने का एक मात्र उपाय है अन्यथा बुराई से किसी प्रकार बचा नहीं जा सकता।

विशेष -
1. यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि बुरी संगति से नैतिक पतन होता है, जिससे चरित्र की हानि होती है।
2. भाषा - साहित्यिक खड़ी बोली।
3. शैली - विवेचनात्मक।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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